Monday, April 9, 2012

untitled-I

छिटपुट हुई बारिश के बाद खिली आँखों को चुभती चटक धूप...साईकिल से, पैदल...स्कूल से घर लौटते बच्चे....
अजीब सी ठण्ड लए वो हवा ...जिससे लड़कर, बहकर, अमलतास के फूल पीले गुच्छों में झड रहे थे..
सब कुछ सामने ही तो था आँखों के फिर भी ऐसा लगा जैसा कुछ भूला हुआ सा याद आ गया हो...या शायद ऐसा कुछ, जो यादों के बिखरे पन्नों से फिसलता जा रहा था...
एक अलग सी बेचैनी, बेवजह ही सही, ...समय के समुद्र सी अथाह ....जिसका कोई ओर नहीं था...कोई छोर नहीं...