Tuesday, March 18, 2014

क्यों ,आज भी
फर्क पड़ता है
क्यों ,
 जब कुछ भी नहीं बाकि रहा है
 तम्हारे मेरे दरमियाँ
 क्यों, आज भी नज़र ढूंढती है
 तुम्हारे चेहरे पर ढल रही वो मखमली धूप
 क्यों,आज भी
खलिश सी एक घर कर जाती है
 हर शाम
 क्यों ,आज भी
याद तुम्हारी आती है
 मैं पूछता हूँ खुदसे ये सवाल
कई दफा
 यूँ ही,
बार बार
क्यों, आज भी,
 यकीन कर पाना मुश्किल है
तुम्हारा मेरा अब एक दुसरे से वास्ता कुछ नहीं
 कुछ भी तो नहीं
 बहुत मुश्किल है अब
 सब कुछ पहले जैसा हो पाना
 फिर क्यों आज भी
एक उम्मीद सी जिंदा है
 और सोचता हूँ मैं
एक बुरा सपना है बस ये

3 comments:

  1. after a long time yr :) ..
    few things r difficult to frgt i guess ...

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  2. smjhte h bhai... but bht accha likha h

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  3. Kya baat hai yaar. 😏 after a long time.. 😢Good one

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