बात कल शाम की है
सड़क पार करते समय
मेरी चाल कुछ धीमी पड़ गयी
और फूल गयी मेरी सांसें
एक कतार से आती हुई गाड़ियों को देखकर
सकपका गया मैं
याद आई मुझे मेरी माँ
जो मेरा हाथ पकडती थी,
मैं निर्भीक सड़क पार करता था
आज मैंने देखा
मेरी माँ कहीं नहीं थी
अंगुली मेरी पकड़ने के लिए
डबडबा आई मेरी आंखें
में हमेशा सोचता, कहता और झगड़ता था
सड़क अकेली पार करने के लिए
आज मैं अकेला था
और सामने एक अंतहीन सड़क
वाक़ई,ज़िंदगी की सड़क पर अकेले ही चलना होता है .माँ नहीं होती है अंतहीन तन्हाइयां ही होती हैं .बहुत ख़ूब.
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